धर्म योग एक जीवन प्रणाली है, धर्म योग एक जीवन की संजीवनी है। संजीवनी का अर्थ होता है – कि व्यक्ति जीता है। धर्म योग यह वह शक्ति है जो व्यक्तियों को व्यक्तियों से जोड़ती है। धर्म कभी भी झगड़ा नहीं सिखाता है। लोग कहते हैं कि – मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना, लेकिन हम यह कहते हैं कि – मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना। लेकिन मजहब है आपने एक छोटा सा घर बना लिया और उसको आपने कह दिया कि मैंने जो घर बनाया है कि यह सुपर है, बेस्ट है। कैसे बेस्ट हो गया? अरे भई जितने शक्तिशाली आप हो, उतने ही शक्तिशाली कोई और होगा। वो आपसे बड़ा घर बनाएगा तो वह बेस्ट कहलाएगा। जब तक यह श्रेष्ठ, श्रेष्ठत: और श्रेष्ठतम की दौड़ खत्म नहीं होगी तब तक संवाद कायम नहीं हो सकता है। झगड़ा मजहबी चीज है, झगड़ा साम्प्रदायिक वस्तु है। झगड़ा तभी हो सकता है जब हम अलग-अलग स्कूल बना लें। जब हम संवाद कायम करते हैं ना आप कभी पवन से कहे कि तुम किस धर्म के हो? क्या कभी आपने सूर्य से पूछा कि आप किस धर्म के हो? और क्या आपने कभी विचार किया कि हम सूर्य से रौशनी ना ले क्योंकि इसे हिन्दू पूजते हैं। नहीं विचार किया। यही वैचारिक न्यूनतमा है। वैचारिका स्पष्टता तभी आती है जब हम सर्वोतो भावेण वस्तुओं पर विचार करते हैं। यह जो धर्म योग है यह धर्म योग विवाद का नहीं यह धर्म योग संवाद की सेतु कायम करने के लिए है। धर्म योग अर्थात् व्यक्तियों का एक दूसरे से मिलना। योग का अर्थ होता है – यूजिर योग: – जोडऩा। यूजिर योग: से यह शब्द बनता है। इसका अर्थ बनता है कनेक्ट। लेकिन किससे कनेक्ट करने के लिए जाएंगे आप? तो कहे हम धर्म से कनेक्ट करने के लिए जाएंगे। तो धर्म क्या कोई व्यक्ति है, जिससे आपने वायर लिया और उसमें अपने आपको कनेक्ट कर दिया। ऐसा तो है नहीं। तो धर्म को जानना पड़ेगा। कि यह है क्या? यह आपके अन्दर बसे हुए जो सात्विक क्रियाएं हैं जो आज जिसको पॉजीटिव एनर्जी है। यह जो पॉजीटिव एनर्जी है यह नेगेटिव एनर्जी से हमें दूर करती है और सकारात्मक क्रियाओं की ओर हमें लेकर जाती है। सकारात्मक क्रियाएं होती है तो लोग सुखी होती हैं, नकारात्मक क्रियाएं होती हैं तो लोग दु:खी होते हैं। तो यह जो धर्म योग है इसमें मानवों का धर्म है। अब मानवों का धर्म क्या होता सकता है जैसे – वायु, पृथ्वी, सागर, पानी, बादल, आकाश को बदला नहीं जा सकता है, तो धर्म को भी बदला नहीं जा सकता है। इसलिए यह वही धर्म है जो आकाश का धर्म है। एक आकाश चाहे भारत में रहे तो भी वैसा ही अथवा विश्व के किसी कोने में जाए तो भी वैसा ही दिखाई पड़ता है और वह विश्व के किसी भी कोने के व्यक्ति के अंदर कभी वैमन्स्यता नहीं फैलाता, बल्कि एकता फैलाता है। तो धर्म एक किनारे से उठकर पृथ्वी के हर कोने पर जाता है और जिस चीज को हम जानते हैं पृथ्वी के अंदर और बाहर लोक में भी रहता है और परलोक में भी रहता है तो जीवन को समन्यक रूप से जीने का नाम ही है धर्म योग है। इसलिए धर्म योग को अपनाइए और आनन्द के साथ जीवन जीने की कला को जानिए।
– ब्रह्मचारी श्री नारायणानंद जी महाराज
उपाध्यक्ष, द्वारका विद्यासभा, देवभूमि द्वारका, गुजरात